Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • जो रामनामकी शरणमें चला जाता है, उसके हृदयमें रामनामका वास हो जाता है और इससे मनोवांछित फलकी प्राप्ति होती है ।

    २५ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
  • शुद्ध विचारकी शक्ति वचनसे बहूत अधिक है ।

    २६ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
  • अशांति और अधीरज दो व्याधि हैं और दोनों आयु हरण करते हैं ।

    २७ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
  • जिसको शांति नहीं व् दृढ़ता नहीं, वह ईश्वरको नहीं पा सकता है ।

    मसूरी २८ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
  • अगर आदर्शको कभी न छोड़ा जाय तो आदर्श हमें कभी नहीं छोड़ेगा ।

    २९ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
  • हम शारीरिक वस्तुमें फंसे रहें और आत्मानुभवकी आशा करें, वह आकाश पुष्पको पाने जैसा है ।

    ३० मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
  • बगैर सत्संगके आत्मा सूक जाती है ।

    ३१ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
  • अगर हमारे पड़ोसी स्वच्छ नहीं हैं, तो हमारी निजी स्वच्छता पंगु है ।

    १ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
  • जो नियम बाहरी स्वच्छताके लिये है, वही आंतरिकके लिये है । हमारे पड़ोसीका अंतर मैला है तो उसका स्पर्श हमको लगेगा ।

    २ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
  • वीरता कोई एक ही मनुष्यका लक्षण नहीं है । सबमें है, लेकिन सब पहचानते नहीं हैं ।

    ३ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
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