Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • जिसका जो कम करता है उसका वह सेवक है, नहीं कि जिसका नाम ही लेता है ।

    १४ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
  • जब हम कुछ भी देते हैं, तो हमारेमें जो सच्चा [है] वही दें ।

    १५ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
  • जब हम जानते हैं कि एक वस्तुकी दो बाजु हैं, तो हम सफ़ेदको देखें ।

    १६ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • आसक्तिसे किया हुआ शुद्ध काममें भी डावपेंच आते ही हैं ।

    १७ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • जब मनुष्य मुझे मारता है, तब ईश्वर सहाय करता है ।

    १८ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • जो आदमी रातको दिन बनाता है वह अनासक्त कैसे?

    १९ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • रामनाम रस पीना है तो काम, क्रोधादि निकालना चाहीये ।

    २० जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • तेरा रिश्तेदार हो तो भी उनके दोष छिपाने की कोशीश न कर ।

    २१ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • समतोलना सब ज्ञानमें उत्तम है ।

    २२ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • अमृत भी उसमें ज़हर पड़ने से ज़हर बन जाता है ।

    २३ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
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