Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • आदमी अपने भीतरी आवाजको कभी न दबावे, भले ही वह अकेला हो ।

    २४ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • जबतक प्रेरणाको बुद्धिका समर्थन नहीं होता, तबतक वह पंगु है ।

    २५ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • नदी जब अपने मूलसे छुटती है तो सूख जाती है । ऐसे ही जब हम अपने मूल परमात्मासे छूट जाते हैं, तो सूख जाते हैं ।

    २६ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • शुद्ध विचार ऐसी सूक्ष्म वस्तु है और इतनी वेगवान वस्तु है कि व्यापक बन जाती है ।

    २७ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • जो मनुष्य सत्यका आग्रह रखता है उसमें विवेक दृष्टी होनी चाहीये, समय की भी होनी चाहीये, विरोधि पक्ष अछि तरह संजना चाहीये ।

    २८ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • मनुष्य मौतके मुँहमें पड़ा है । मौतका मुंह बंध पड़ने पर मरा हूआ कहा जाता है ।

    लिखा पूनामें, ट्रेनमें २९ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • जब ऐसी स्थिति है, तो नाचना क्या, अभिमान क्या?

    ३० जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • जब सत्य यानि ईश्वर अपने साथ है तो जगत् साथ दे तो क्या, न दे तो क्या? मरे तो क्या, जिये तो क्या?

    १ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४२
  • अगर तू ईश्वरके सामने खड़ा होना चाहता है, तो अहंकारका जामा उतारकर जा ।

    २ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३
  • अगर तू सचमुच नम्र है तो अंतरमें भी दूसरे जो तेरे तपश्चर्या नहीं करते हैं उसकी दिलमें भी नदामत कभी नहीं करेगा ।

    ३ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३
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