Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • ईश्वर है तो सब जगह, फिर भी अगर हम वह है ऐसे जानना चाहते हैं तो हमरे अहंभाव छोड़कर उसकी जगह खाली राखनी चाहीये ।

    नयी दिल्ली १५ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९
  • जब आत्मा मरता है, तब परमात्मा जगह रोकता है ।

    १६ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९
  • जो मनुष्य दूसरोंकि ऐब निकालता है वह अपनी नहीं देख सकता ।

    १७ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
  • एक तरफ सतु और दूसरी तरफ जगतका राज्य । तो, हे मन ! तू सैट पसंद करेगा, जगतका राज्य फेंक देगा ।

    १८ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
  • किसी औरकी गुलामीसे दहशत और स्वार्थकी गुलामी बदतर है ।

    १९ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
  • जब सब कुछ ईश्वरका है, तब उसको क्या अर्पण करें?

    २० मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
  • ईश्वरको तारणहार कहकर अपने आलस्यको बढ़ाते हैं तो गुनाह करते हैं ।

    २१ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
  • जिह्वा कर्जा नहीं भारती है, लेकिन कार्य ही भरता है ।

    २२ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
  • जो हमारे हृदयमें है उसे कभी-न-कभी बाहर निकलना ही है ।

    २३ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
  • त्रिविध ताप मिटाने वाली दवा मात्र रामबाण [रामनाम] है ।

    २४ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४०
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