Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • दूसरोंके लिये जो उपदेश योग्य लगता है, वही अपने लिये योग्य लगता है, सो कैसे होता होगा?

    २५ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८
  • जब तुझे सब छोड़ेगा, तब इशेअर तो तेरे पास है ही ।

    २६ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८
  • जब आकाश तेरेमें भरा है और ईश्वर तो उसमें है हि, तो तुझे और क्या चाहिये?

    २७ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८
  • धैर्यके फल मीठे होते हैं ।

    २८ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८
  • मेरे धंदेके बारेमें मैं क्यों किसीपर निर्भर हूं?

    २९ अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८
  • गुस्सा किसपर करना? अपनेपर? यह तो रोज करो । दिसरोंपर? यह तो करने का कारण ही क्या?

    ३० अप्रेल, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८
  • दो विरोधि वस्तु हम साथ-साथ नहीं कर सकते हैं, न जम ऐसे सोच सकते हैं ।

    १ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३८
  • जैसे हम आदर्शके नजदीक पहोंचते हैं, ऐसे हम सच्चे बनते हैं

    शिमला २ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९
  • शुभ विचार करना एक बात है, अमल करना अलग बात है ।

    ३ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९
  • अकेलेपनमें जो लाभ है वह अनुभवसे ही सिद्ध हो सकता है ।

    ४ मई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४३९
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