Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • सत्य ईएसआई चीज है जो कहने में आदमीको बार-बार सोचकर बोलना पड़ता है ।

    ४ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
  • ज्ञानी पुरुष त्यागसे ही शांति पाता है ।

    ५ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
  • जब हम रेलगाड़ीके समय के बाहर जाय तो गाड़ी चुकते हैं । प्रार्थनाके समय न पहुंचें तो?

    ६ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
  • जब हमारे हृदयमें ईश्वरका वास हो जा[ता] है, हम न ख़राब विचार कर सकते [हैं], न खराब काम ।

    ७ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
  • जब मनुष्यके दिलमें पूर्ण प्रकाश होता है तो कोई रूकावट हमारे रस्तेमें रहती ही नहीं ।

    ८ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
  • जीवन गुलाबका बिछाना नहीं है, काँटोंसे भरा हुआ है ।

    नयी दिल्ली ९ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
  • जो मजे छिपे कर्तव्यमें हैं, सो दूसरेमें नहीं हैं ।

    १० जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
  • ध्यानाव्स्थित होना, वह सूक्ष्म विचारकी निशानी है और विचारधारा शुद्ध और परिपक्व बनाती है ।

    ११ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
  • जो बहूत गिनती करता है, वह आत्म दर्शन नहीं कर सकता है ।

    १२ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
  • रामके नामसे जो रावणका कम करे, उसे या कहें?

    १३ जून, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४१
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