Thoughts of Mahatma Gandhi

You are here

  • मनुष्य अकेला कुछ नहीं है, लेकिन जब वह ईश्वरका बनता है, तब सब कुछ होता है ।

    १४ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३
  • जब हमारा प्रेरक भगवान होता है, तब हमको और कोई ख्याल नहीं करना पड़ता है ।

    १५ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८४, पृ. ४४३
  • [जो] धीरज खोता है वह सत्य खोता है अहिंसा खोता है ।

    पंचगनी १६ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८८
  • सच्चके जैसा कोई सुख नहीं, जूठके जैसा कोई दुःख नहीं ।

    पंचगनी १७ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८८
  • ताज्जुब तो यह है कि जानत हूए कि सच्चा सुख कहां है आदमी जूठके पीछे जीवन देता है ।

    पंचगनी १८ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८८
  • जो कुछ हम करें सो न किसीको खुश करने के लिये न रंजीदां करने के लिये, सिर्फ अपने ईश्वरको खुश करें ।

    पंचगनी १९ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८८
  • अगर सो दफा एक बात कहने से भी वह न सुने तो भी बार-बार कहते रहना वही धीरज कहती है ।

    पंचगनी २० जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८८
  • जब सेवा अविच्छा [अनिच्छा] होते हुए लेनी पड़ती है और सेवा आनंदपूर्वक नहीं होती है, तब सेवा दुःखद होती है ।

    पंचगनी २१ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८८
  • मनुष्य जब अपने स्वभावको दबाता है तब सावधानीकी बड़ी आवश्यकता है ।

    पंचगनी २२ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८८
  • स्वाभाव अगर बुरा है तो उसे दबाना नहीं पर उसे फेंक देना ।

    पंचगनी २३ जुलाई, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८८
GoUp