Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • रामनामकी भी शक्तिकी मर्यादा है । क्या कोई चोर रामनामसे कामयाबी हांसिल कर सकता है?

    बम्बई १५ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६३
  • जो भाता है उसे मिलने से सही सुख नहीं मिलता । वह जो नहीं भाता है वह भाने से मिलता है ।

    पूना १६ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६३
  • जिसकी आंख एक कहती है, जीभ दूसरी, हृदयमें तीसरी चीज है वह घर-फूटा है निकम्मा है ।

    पूना १७ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६३
  • जब हम जानते हैं कि यमराज हमें कल ले जायगा हमें क्या हक है कि हम जो आज क्र सकते हैं सो कल करें?

    पूना १८ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६३
  • अच्छा कम इसी क्षण करे बुरा कम हमेशा मुल्तवी करते रहे ।

    पूना १९ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६३
  • जिसका साथी ईश्वर है उसको दुख क्या, फिकर क्या, दूसरा साथी क्या?

    पूना २० मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६३
  • ईश्वरको याद करना दूसरोंको भूलना अर्थात् दूसरोंमें ईश्वरको देखना ।

    पूना २१ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६३
  • जैसे विचार करता हू मालुम होता है कि हृदयसे, ज्ञानसे लिया हुआ रामनाम सर्वग्याधिका निवारण है ।

    उरुलीकांचन २२ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६४
  • राग-द्वेषादि भी व्याधि है और शारीरिक व्याधिसे बदतर है । उसका निवारण रामनामके बिना कैसे हो सके?

    उरुली २३ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६४
  • मनका मैल शरीरके मैलसे भयंकर है लेकिन शरीरका मैल भीतरी मैलकी निशानी होती है ।

    उरुली २४ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६४
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