Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • हमें बुद्धि है और इससे प्रे अन्तर्नाद है । दोनोंकी अपनी-अपनी जगह जरुरत है ।

    मदुरा-पलनी ३ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९
  • जीवनकी सफलताका सही निशान है कि मनुष्य कोमल बनता जाता है और पिढ ।

    मद्राससे ट्रेनमें ४ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९
  • मनुष्य जितना बोल क्र बिगड़ता है इतना ख़ामोशीसे कभी नहीं ।

    ५ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९
  • ख़ामोशी ख़ामोशी नहीं है जो डरके मरे होती है ।

    सेवाग्राम ६ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९
  • जब जगत् हमें गिराता है, तब ईश्वर हमारा बेली होता है ।

    सेवाग्राम ७ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९
  • सब हमें भले ढीले कहें, हम आदर्शको ढीला न करें ।

    सेवाग्राम ८ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९
  • बगैर भीतरकी शांतिके, बाहरी शांति कुछ कामकी नहीं है ।

    सेवाग्राम ९ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९
  • जो मनुष्य अपने दुःखोको गाता है वह उसे चोगुना करता है ।

    सेवाग्राम १० फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९
  • जब तक हमें भीतरसे रौशनी मिलती है हम कुछ सही नहीं कर पाते है ।

    सेवाग्राम ११ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०
  • जो मनुष्य कभी निराश नहीं होता है, वही सरदारी क्र सकता है ।

    सेवाग्राम १२ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०
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