Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • आदर्शका ध्यान करने से उसकी विशालता नहीं बढ़ती है लेकिन गहराई अवश्य बढ़ती है ।

    सेवाग्राम १३ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०
  • अंतरज्ञान अमूल्य वास्तु है उसे हम बगैर मेहनत चाहते हैं । धन, कीर्ति आदी की कुछ किम्मत नहीं है । उसके लिये हम सब कुछ देने को तैयार होते हैं ।

    सेवाग्राम १४ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०
  • जिसे न शांति है, न निश्चय, उसे ज्ञान कहांसे?

    सेवाग्राम १५ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०
  • बगैर निस्वार्थताके निर्भयता कैसी?

    १६ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०
  • हम सत्संग ढुंढते हैं क्योंकि हमारी आत्माके लिये वही खुराक है ।

    ट्रेनमें १७११ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०
  • नम्रताका ढोंग नहीं चलता, न सादगीका ।

    बम्बई १८११ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०
  • जैसे बीजको फल देने में अपनी मुद्दत चाहीये, ऐसे ही कार्यके लिये है ।

    बम्बई १९ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०
  • जो मनुष्य इर्द गिर्दके वायुमंडलका गुलाम बनता है, वह मंदबुद्धि बनता है ।

    पूना २० फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६०
  • जिसका मन हरेक हालतमें शांत नहीं रह सकता है वह शांत नहीं है, कैसे भी बाहरसे शांत लगे ।

    पूना २१ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१
  • संगीत गलेसे ही निकलता है ऐसा नहीं । मनका संगीत है, इंद्रियोंका है, हृदयका है ।

    २२ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१
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