Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • बात यह है कि जीवन संगीतमय होना चाहिये, तब हलन-चलन इ[त्यादी] सब वर्तनमें माधुर्य ही होगा ।

    २३ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१
  • ईश्वर सर्वत्र है, इसीलिये वह हमसे पत्थर, वृक्ष, जंतु, पक्षी, पशु इ[त्यादी] के मार्फत बोलता है ।

    पूना २४ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१
  • जो तेरेमें ही हे, उसे बाहर कहां ढुंढता है?

    पूना २५ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१
  • ईश्वरके बाहर हमें कोई हस्ति ही नहीं है ।

    पूना २६ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१
  • सिवाय ईश्वरकि गोदके हमें और कहीं सलामती हो ही नहीं सकती ।

    पूना २७ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१
  • जैसे पानीका स्वाभाव ही नीचे जाने का है, ऐसे ही जो स्वाभावसे नम्र है उसकी नम्रता पानीकी-सी जगत्को लाभदायक होती है ।

    पूना २८ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१
  • हमारी स्थितिके कर्ता हम ही हैं ।

    १ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६१
  • हमारी श्रद्धा अखंड बत्तीके जैसी होनी चाहिये । हमको तो प्रकाश देती है लेकिन आसपास भी देती है ।

    पूना २ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६२
  • स्वार्थ हमेशा हमे चिंता ग्रस्त करता है ।

    पूना ३ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६२
  • गंगा कब सूखेगी? जब अपने मूलको छोड़े तब । ऐसे आत्मा जब परमात्मासे छुट जाय तब ही सूख सकती है ।

    पूना ४ मार्च, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४६२
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