Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • अहिंसामें सबका भला रहता है, नहीं कि सबसे अधिक संख्याका ही भला सबका भला सिध्द करने के लिये आवश्यकता होने से अहिंसकको मरना है

    दिसम्बर २४, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८०
  • प्रार्थनाके लिये ह्रदय आवश्यक है, वाचा नहीं बगैर ह्रदयकी वाचा निरर्थक है

    दिसम्बर २५, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८०
  • पवित्रता बाहरकी रक्षा मांगती ही नहीं है

    दिसम्बर २६, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८०
  • हमारा सबसे बड़ा शत्रु विदेशी नहीं है, न कोई दूसरा हमारा शत्रु हम ही है अर्थात हमारी बासना

    दिसम्बर २७, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८०
  • जो किसीकी गुलामी करना नहीं चाहता है उसे ईश्वरकी गुलामी करना है

    दिसम्बर २८, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१
  • हिंसा त्याज्य है क्योंकि उससे [जो] लाभ होता लगता है, वह आभास है, नुकसान होता है वह कायमी है

    दिसम्बर २९, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१
  • मनुष्य अपने विचारका पुतला है

    दिसम्बर ३०, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१
  • सही धर्मको क्षेत्रकी मर्यादा नहीं होती है

    दिसम्बर ३१, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१
  • अगर हम साफ कागद [कागज] को देखेंतो हम नहीं कह सकते है उलट क्या सुलट क्या ऐसे ही अहिंसा और सत्यका है एकके सिवाय दूसरा रह ही नहीं सकता

    जनवरी १, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१
  • दुःखकी बात मानी जायगी यदि मृत पशु और मनुष्य देहको एक ही खड्डेमें दफ़न किया जाय विचार करने से लगेगा कि वहीँ दुःखमें हम भव्य सुख उत्पन्न करते हैं कि सब जीवका ऐक्य सिध्द करते है

    काशी, जनवरी २, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१
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