Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • सौंदर्य चेहरेके रंगमें नहीं है लेकिन सत्यमें ही है

    दिसम्बर ४, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८
  • मनुष्य एक शासके ताबे रहता है उसके मानी है कि वह व्यक्तिगत स्वातंत्रयकी किमत देता है

    दिसम्बर ५, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९
  • जब शासन ऐसा ख़राब रहता है कि उसके ताबे नहीं रहा जाता है तब व्यक्तिगत स्वातंत्र्यका त्याग करके भी मनुष्य अहिंसक विरोध करता है

    दिसम्बर ६, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९
  • सच्च तो यह है कि जितने आदमी है इतने धर्म है लेकिन जब आदमी अपने धमकी जड़ तक पहोंचता है तो देखेगा की धर्म तो एक ही है

    दिसम्बर ७, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९
  • साधनका हम ख्याल रखें तो साध्य हमारे पास ही है यानी साधन और साध्यके बीच अंतर ही नहीं है ऐसे कहा जाय

    दिसम्बर ८, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९
  • भूल कबूल करना झाडूके समान है झाडू गंदकी साफ करता है, भूल का स्वीकार कम काम नहीं देता

    दिसम्बर ९, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९
  • एक संपूर्ण पुरुष असत्यको दूर कर सकता है, भले असत्य कहने वाले अनेक हो

    दिसम्बर १०, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९
  • हिंसक कार्यकी मर्यादा है और वह निष्फल हो सकता है अहिंसाकी मर्यादा है ही नहीं और कभी निष्फल नहीं जाती

    दिसम्बर ११, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९
  • श्रध्दाकी परीक्षा सबसे कठिन अवसरपर होती है

    दिसम्बर १२, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९
  • हिंसा दुर्बलका शस्त्र है अहिंसा सबलका

    दिसम्बर १३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७९
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