Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • निर्दोष और निःस्वप्न निद्रा समाधि है, योग है, अनासक्त कर्म है(विनोबा के खतके आधारपर)

    नवेम्बर १४, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७६
  • सच्चे भक्तके लिये कुछ भी अशक्य नहीं है

    नवेम्बर १५, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७
  • भक्त भगवानमें लींन होता है

    नवेम्बर १६, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७
  • जो भगवानमें लीन है वह भगवानके बाहर किसीमें या किसी चीजमें कौन नहीं हो सकता

    नवेम्बर १७, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७
  • कहते है घर जलाकर तीर्थ नहीं होता सही तो यह है कि घर जलाकर जी तीर्थ होता है

    नवेम्बर १८, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७
  • बंदूकका भय बंदुक फुटने [छुटने] पर मिट जाता है प्रेमका बंधन बढ़ता ही जाता है फिर भी बंधन ही नहीं लगता

    नवेम्बर १९, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७
  • मनुष्यके सच्चे दुश्मन छे होते है कम, क्रोध, मोह, मद, मान, शोक इनको जीतने से औरोंको जीतना आसान बात हो जाती है है

    नवेम्बर २०, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७
  • बूरा कम करना तो सब मानते है मोह है, अग्नान है लेकिन अच्छा काम करने के लिये बुरा काम करना अच्छा समजा जाय, वह उससे भी गाढ़ मोह या अग्नान कहा जाय

    नवेम्बर २१, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७
  • मनुष्य अगर अपनी शक्तिके बाहर कम न ले तो गभराहटको स्थान ही नहीं रहता

    नवेम्बर २२, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७
  • जो मनुष्य एक वस्तु नहीं समजता है उसे करने के लिये उसे मजबूर करना सख्त सजासे अधिक सजा है

    नवेम्बर २३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७
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