Pensées du Mahatma Gandhi

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  • शारीरिक दुर्बलता सच्ची दुर्बलता नहीं, मनकी दुर्बलता ही सच्ची दुर्बलता है

    सोदपुर जाते हुए, जनवरी ३, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१
  • सेवककी सच्ची बेंक आम जनता है जो बेंक कभी टूटती नहीं

    सोदपुर, जनवरी ४, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१
  • जो त्याग दिलसे नहीं होता है वह स्थिर नहीं रहता है

    सोदपुर, जनवरी ५, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१
  • दुःखके समय जो भगवानका दर्शन करता है, उसे कोई भय नहीं लगता है

    सोदपुर, जनवरी ६, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१
  • जिस तालीमका असर हमारे चरित्रपर नहीं होता है वह कुछ कामकी नहीं है

    सोदपुर, जनवरी ७, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८१
  • स्वच्छता जब भीतरी और बाहरी रहती है तब वह ईश्वरमयताको पहुंचती है

    आसाम मेलमें, जनवरी ८, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२
  • हे जिव! तू अनासक्त है तो तुझे शोरगुलको और मारपीटको भी बरदास्त करना है

    आसाम मेलमें, जनवरी ९, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२
  • तुझे क्या, लोग तेरी निंदा करें या स्तुति! जो धर्म समझ वही किया करे

    सरानी या गोहती जनवरी १०, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२
  • सबल ही क्षमावन हो सकता है बलहीन दण्ड देने में असमर्थ है इसलीये वह क्षमावान हो ही नहीं सकता है

    सरानी या गोहती जनवरी ११, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२
  • जो अर्थशास्त्र नीतिसे भिन्न या विरोधी है वह निषिद्ध है, त्याज्य है

    सरानी या गोहती जनवरी १२, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२
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