Pensées du Mahatma Gandhi

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  • जैसे दूधमें शक्कर मिलती है ऐसे विदेशी पुरुष जब स्वदेशीके साथ मिल जाता है, तब ही स्वागत सत्कारके योग्य बनता है ।

    मद्रास २३ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८
  • दोष कबूल करने से ही दोष नहीं मिटता, दोष मिटाने के लिये जो शक्य है वह करना भी चाहीये ।

    मद्रास २५ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८
  • सत्यके साथ दृढ़ता होनी ही चाहीये ।

    मद्रास २६ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८
  • वहम और सत्य साथ नहीं चल सकते हैं ।

    मद्रास २७ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८
  • सिवाय मनकी स्थिरताके दर्शन हो ही नहीं सकता है ।

    मद्रास २८ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८
  • जिसे ईश्वरका सहारा है उसे पंगु मन्ना पाप समझा जाय ।

    मद्रास २९ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८
  • त्याग ही सच्चा भोग है ।

    मद्रास ३० जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८
  • सच्ची दुर्बलता बाहरी नहीं है अंतरकी ही है ।

    ३१ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८
  • एक ज्ञानी कहते है कि मौनसे हम अपनी आत्माके दर्शनके योग्य बनते हैं, और हमारा बाहरी वर्तन अंतरके साथ मिलता है ।

    १ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८
  • जब हमारा मन शांत है तब हमें सब भीतरसे मिलती है और वह अमोघ होती है ー वही ज्ञानीका वचन है ।

    मदुरा २ फरवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५९
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