Pensées du Mahatma Gandhi

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  • मैं एक आदमीको देखता हूं मेरा भाई है और प्रेम करता हूं कि वह मेरा भाई नहीं है वह तो है सो है तो उसका त्याग करता हूं ईसमें दोष किसका ?

    नवेम्बर २४, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७७
  • जिस वस्तुका चितवन हो नहीं सकता उसके बारेमें तर्क वितर्क करना फिजुल नहीं तो क्या ?

    नवेम्बर २५, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८
  • जब दीवाना जैसा हमारे सामने आवे और जगहका, खाने का कब्जा ले तब क्या किया जाय ? अहिंसक क्या उपाय है ? सरल जवाब तो है की प्रेमपूर्वक कब्ज़ा लेने दें और खाने दें

    नवेम्बर २६, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८
  • जो मजदुरी नहीं करता लेकिन खता है वह चोरीका अन्न खाता है

    नवेम्बर २७ दिसम्बर ३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८
  • जब तक एक भी मनुष्य कम नहीं होने के कारण भूखों मरता है तब तक कौन चेनसे खा सकता है ?

    नवेम्बर २८ दिसम्बर ३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८
  • तुमारे जेबमें एक पैसा है वह कहांसे और कैसे आया है वह अपनेसे पूछो उस कहानी से बहुत सीखोंगे

    नवेम्बर २९ दिसम्बर ३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८
  • जिसको रोटी न मिलने से मरना है उसे तो ईश्वर रोटीमें ही देखने में आवेगा

    नवेम्बर ३० दिसम्बर ३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८
  • नंगोंको कपड़ा देकर उनकी नदामत क्या करना ? उनको काम दो जिससे वह निजी परिश्रमसे कपड़ोंके लिये धन पैदा करे

    दिसम्बर १ दिसम्बर ३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८
  • जो शरीर श्रम कर सकते हैं उनके लिये सदाव्रत खोलना पाप है उनके लिये कम पैदा करना पुण्य है

    दिसम्बर २३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८
  • जो श्रध्दा कभी बुझती नहीं है मगर बढ़ती है वह अनुभवका रूप लेती है

    दिसम्बर ३, १९४५, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४७८
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