Pensées du Mahatma Gandhi

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  • मनुष्य वहां है जिघर उसका मन है, नहिं कि वहां जिघर उसका देह है

    जहाजमें घुबरी जाते हुए जनवरी १३, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२
  • जो विरोधीकी दयाकी अपेक्षा करती है सो अहिंसा नहीं है

    सोदपुर जनवरी १४, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२
  • अनासक्तिका एक लक्षण यह है : अनासक्तका कोई कार्य दिनके अंतमे बाकी नहीं रहता

    सोदपुर जनवरी १५, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२
  • अनास्क्तको अखूट [अटूट] धीरज होनी चाहिये

    सोदपुर जनवरी १६, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२
  • अनासक्तको कभी क्रोध होना ही नहीं चाहिये

    सोदपुर जनवरी १७, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२
  • जो मनुष्य यह मेरा और वह तेरा मानता है, वह अनासक्त नहीं हो सकता है

    सोदपुर जनवरी १८, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२
  • अनासक्तको अपना कुछ नहीं हो सकता है

    मद्रास जाती हुई ट्रेनपर जनवरी १९, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८२, पृ. ४८२
  • देहधारीके लिये जो शक्य अनासक्ति हो सकती है, उसके सिवा १२५ वर्षकी आयु असंभव मानी जाय ।

    मद्रास जाते हुए ट्रेनमें २० जनवरी, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५७
  • जो मनुष्यका मन जानबुझकर गंदा रहता है, उसके लिये अगर कुछ है तो रामनाम ही है ।

    मद्रासके नजदीक पहुँचते हुए ट्रेनमें २१ जनवरी, १९४६, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५७
  • आवेश शांत होने पर ही जो कम किया जाता है वही फलदायी होता है ।

    मद्रास २२ जनवरी, १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८३, पृ. ४५८
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