Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • हरेक आदमीको अपना मूल ढुंढना चाहीये ।

    नई दिल्ली २ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२
  • जो अपनेको नहीं पहचानता है वह नष्ट होता है ।

    नई दिल्ली ३ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२
  • मनुष्य शरीर वाजित्र [वादित्र] है जैसा सूर निकालना है निकल सकता है ।

    नई दिल्ली ४ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२
  • विचारको [लौह]खंडकी दीवारको भी भेदता है ।

    नई दिल्ली ५ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२
  • मरो और तरो ।

    नई दिल्ली ६ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२
  • श्रद्धासे जहाज चलती है ।

    नई दिल्ली शनी, ७ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२
  • मौतकी धमकीसे क्या डरना क्योंकि वह तो सदाकी है ही ।

    नई दिल्ली रवी, ८ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९२
  • हम सब दीवाने हैं उनमें कौन किसको दीवाना कहे?

    नई दिल्ली सोम, ९ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३
  • जब हम पार्टी साफ़ करते हैं तो उसपर ईश्वरके हस्ताक्षर स्पष्ट देखते है ।

    नई दिल्ली मंगल, १० सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३
  • आकांक्षा कितनी भी बड़ी हो उसकी मर्यादामें छोटेसे-छोटा माना जाता प्राणी भी होना चाहिये ।

    नई दिल्ली बुध, ११ सितम्बर १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९३
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