Thoughts of Mahatma Gandhi

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  • सत्यके उपासकके लिये स्तुती और निन्दा एक ही होनी चाहीये इस वास्ते वह स्तुती सुनेगा नहीं और निंदासे गुस्सा नहीं करेगा ।

    उरुली ३ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४८९
  • जो ईश्वरके सन्मुख है वह बोलता नहीं, बोल सकता नहीं ।

    पुना, रविवार ४ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०
  • मनुष्यको दो आंख है और दो कण एक जिह्वा इसलिये देखे । इससे आधा बोले, और सुने इससे और आधा बोले ।

    वर्धाकी ट्रेनपर सोम, ५ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०
  • अपनेको धोखा देने की मनुष्यकी शक्ति अजीब है ।

    सेवाग्राम मंगल, ६ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०
  • सब दे दो, सब ले लो ।

    सेवाग्राम बुध, ७ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०
  • सब रखो, सब खोवो ।

    सेवाग्राम गुरु, ८ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०
  • दोषमें थोड़ा, बहूत क्या? दोष ही है । अन्यथा मानने में आत्मवंचना होती है ।

    सेवाग्राम शुक्र, ९ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०
  • किसी भी वस्तु तोडना आसन है सांधने में बड़ी कुशलता और सावधानी चाहीये ।

    सेवाग्राम शनि, १० अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०
  • जब हम अपना ही ख्याल करते हैं तब दूसरोंका ख्याल करने से वह छुटता है ।

    सेवाग्राम रवि, ११ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०
  • धैर्यसे बहूत कम बनते हैं, अधैर्यसे बिगड़ते हैं ।

    सेवाग्राम सोम, १२ अगस्त १९४६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय खण्ड ८५, पृ. ४९०
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